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१६ अफतूबर , १९७१
भौतिक पीडापर कैसे अधिकार किया जाय?
मैं अभी ठीक यही अनुभूतियां प्राप्त कर रही हूं।
शरीर ऐसी अवस्थामें है जिसमें वह देखता है कि सब कुछ केवल इस- पर निर्भर है कि वह भगवानके साथ किस तरह जुड़ा हुआ है - यानी, ग्रहणशील समर्पणपर निर्भर है । अभी पिछले दिनों भी यह अनुभव हुआ है । ठीक वही चीज जो -- असुविधासे बढ़कर - एक पीड़ा और प्रायः असह्य रोगका कारण होती है, वही भगवान्से प्रति शरीरकी ग्रहणशीलतामें जरा-सा परिवर्तन होते ही एकदम गायब हो जाती है -- इतना ही नहीं, आनंदमय अवस्थाकी ओर जा सकती है । मुझे इसका अनुभव कई बार हुआ है । मेरे लिये यह केवल उस सचाईका प्रश्न है जो तीव्र होने लगी है -- चेतनामें यह बात कि हर चीज भगवान्की क्रिया है और उनकी क्रिया, परिस्थितियां मिले तो, अधिक-सें-अधिक संभव तेज उपलब्धिके ओर जाती है ।
मैं कह सकती हू. शरीरके कोषाणुओंको केवल भगवान्में ही आश्रय ढूंढना सीखना चाहिये -- उस क्षणतक जबतक वे यह अनुभव न कर सकें कि वे भगवान्की हीं अभिव्यक्ति है ।
वास्तवमें, यही वर्तमानकी अनुभूति है । वस्तुओंके प्रभावको बदलनेकी अनुभूति मुझे है; लेकिन उसे मानसिक रूप नहीं दिया गया है, अतः मै उसे शब्दोंमें नहीं कह सकती । लेकिन सचमुच कोषाणुओंने अनुभव करना शुरू कर दिया है. सबसे पहले यह कि वे पूरी तरह भगवान्से शासित है (इसका अनुवाद होता -- है : जो तू चाहे, जो तू चाहे..), यह स्थिति, और फिर एक प्रकारकी ग्रहणशीलता जो (कैसे कहा जाय?) निष्क्रिय -- निश्चल नहीं -- है । यह... संभवत., हम कह सकते हैं, एक निष्क्रिय ग्रहण- शीलता है (माताजी मुस्कानके साथ अपने हाथ खोलती हैं), लेकिन पता नहीं कैसे समझाया जाय ।
सभी शब्द मिथ्या हैं, लेकिन हम कह सकते है - केवल 'तू' ही है -- हां, कोषाणुओंको लगता है : केवल 'तू' ही है । हां, ऐसा ही है । लेकिन यह सब ऐसा है मानों चीज कठोर बन गयी - शब्द अनुभूतिको कठोर बना देते हैं । एक प्रकारकी नमनीयता या लचीलापन है (विश्वासपूर्ण, बहुत विश्वासपूर्ण लचीलापन) जो 'तेरी' इच्छा, जो 'तेरी' इच्छा..
( मौन)
यह अमुक प्रकारकी वृत्तिमें (लेकिन इसे समझाना या इसकी व्याख्या करना कठिन है), अमुक प्रकारकी वृत्तिमें सब कुछ भगवान् बन जाता है । और तब विस्मयकारी बात तो यह है कि जब तुम्हें हर चीजके दिव्य होने- की अनुभूति हों तो सभी विपरीत चीजें (यह चीजोंपर निर्भर है). तेजीसे या धीरे-धीरे, तुरंत या जरा-जरा करके, बिलकुल स्वाभाविक रूपमें गायब हो जाती है ।
यह वास्तवमें अद्भुत है । यानी, इस बातसे सचेतन होना कि सब कुछ भगवान् है, सब कुछको भगवान् बना देनेका सबसे अच्छा तरीका है - यह समस्त विरोधोंको समाप्त कर देता है ।
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